This poem was written a couple of years back when there
were 'spontaneous' protests by brothers on Bush's visit to
India and IIMA Don Lalu had just recently delivered a custom made
enquiry holding a gas cylinder as the likely culprit for the burning
alive of 59 people. Sadly 2 years on, situation is almost same.
Only thing, besides PM, super PM and HM,President and Vice President have
joined the rank of dignitaries who are 'sad' on the deaths due to blasts in 'walled'
city area of Jaipur.
एक और हादसा भयानक
ये क्या हो गया अचानक
कल तक चिललाते थे बुश बुश
और हम मुसकाते थे खुश खुश
लातौँ के भूत बातों से नहीं मानते
इतित सी बात भी नहीं जानते
हम लातौँ के भूत हैं
विकास से पराभूत हैं
अपनी बात सुनाने को
लो कर दिया धमाका
मैने सुना ठहाका
ये था लालू जी का ठठा
ये तो एक सिलेडंर फटा
मनिद्र में कौन फौडे बम
केइसके दिल में इतना दम
ये तो है पुजारी की गलती
फैँकी उसने बीडी जलती
इनके काम नहीं नापाक
ये तो हैंं बहुत ही पाक
ये तो बस शांती चाहते
सदा खुशी के गीत गाते
तुम जैसे कुछ नापाक
साजिश करते हो चुपचाप
ख़ुद करते हो विस्फोट
मढ देते हो इन पर दोष
ये तो हैंं अल्लाह के बंदे
काम नहीं ये करते ये गंदे
अच्छे हैंं सब इनके धन्दे
्दिमाग तुम्हारे ही हैंं ्मनदे
Tuesday, May 13, 2008
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